उम्र रफ़्ता-रफ़्ता गुजरती रही
सुध न था
बेसुध हो
चलता रहा..
यहाँ-वहाँ
मिली ठोकरे हजार
पर दिल सम्हलता रहा
जैसे लगा हो ठोकर
अभी तो पहली बार.
तुमसे मिलकर
मेरी दुनिया ही बदल गई
लगा
जीने लगा हूँ
भूलकर बातें तमाम.
वो वक्त था खुशनुमां
तो ये वक्त भी नही बुरा
सोचकर
तेरी यादो के कारवाँ संग गुजरता रहा..
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज