शनिवार, 29 दिसंबर 2018

कभी यहाँ बरसते हो, कभी वहाँ


Art by Ravindra Bhardvaj
सावन 
बादर 
नैना 

रूप 
धुप 
चैना 

कभी यहाँ बरसते हो 
कभी वहाँ

जहाँ 
प्यासा है 
वहाँ क्यू नही 

एक उत्तर.. 
प्रश्न कई
ऊठ रहे है पानी के बुलबुले सा 
मन में 

अन्तस् में 
पीड़ा है 
घना 

पीड़ा की बीड़ा
ऊठाये 
कबतक कौन ?

वो भी मौन रहकर 
- रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

चलता चल..!

Art by Ravindra Bhardvaj
तू अपनी लौ में 
जलता चल !

मेरे-तेरे भाग्य का फैसला 

करेगा वो ऊपर वाला ही !

तू अपनी ही मति से 

नदी की गति  सी बहा कर !

ठहरना 
खरगोश को पड़ता है 
कछुआ सा चाल 
चलता चल..!

सूरज 

सुबह का इन्तजार करता है 
चाँद 
रात का 

इन्तजार करता रह 

तुम्हारे उदय में अभी समय शेष है 
चल 
अपने गन्तव्य पर 
चलता चल..!
- रवीन्द्र भारद्वाज


गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

फिर क्यू नही मिलते हम

Art by Ravindra Bhardvaj
मिले भी तो कुछ इस तरह 
मिलना बिछड़ना जैसे लगा 

गले मिलने जैसा कुछ नही था 
पर बिछड़ना कतई गवारा न हुआ

मैं सागर 
तुम नदी 
यही कहती थी न तुम

फिर क्यू नही मिलते हम 
जब एक-दुसरे में विलीन होना है हमको
- रवीन्द्र भारद्वाज 

बुधवार, 26 दिसंबर 2018

नामुमकिन था

Art by Ravindra Bhardvaj
ट्रेन का रुकना 
नामुमकिन था

नामुमकिन था
वैसे ही
तुम्हें भी रोक पाना
- रवीन्द्र भारद्वाज


मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

चाँद उतर रहा है

Art by Ravindra Bhardvaj 


चाँद उतर रहा है
चाँदनी की सीढ़ी लगाकर
मेरे अंगना में।

मैं खोई खोई सी रहती हू
आजकल कुछ ज्यादा ही
शायद इसीलिये आया है मुझे अपना पता ठिकाना बताने।
- रवीन्द्र भारद्वाज 

सोमवार, 24 दिसंबर 2018

कम-स-कम

Art by Ravindra Bhardvaj
साथी ! 
मानांकि 
हम मिल नही सकते 

एक-दुसरे के 
लबो को 
चूम नही सकते 

पर 
गिले-शिकवे 
मिटा सकते है 
बात करके 

ऐसी चुप्पी क्यू साधना 
तिल-तिल के 
लील जाये
जो 
तुमको 
हमको,
कम-स-कम 
हाय..
गुडमार्निंग 
कैसे हो..
पूछ लिया करो..
यारा !
- रवीन्द्र भारद्वाज 

रविवार, 23 दिसंबर 2018

वो मुस्कान

Art by Ravindra Bhardvaj
पहली मिलन पर 
खिली चेहरे पर तुम्हारे मुस्कान 
आज भी महकती है 
मानांकि वो फूल नही 
फिरभी 
महकती है..

मेरी आत्मा तक में 
समाई है 
उसकी खुश्बू 

दूसरा मिलन 
अभी हुआ नही 
वरना 
वो मुस्कान 
बिखर जाती 
गमगीन हुए हवा में.
- रवीन्द्र भारद्वाज 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...