तुम्हारे गाँव से उड़ते आ रहे पंछी
गोधूलि बेला
मन को सहसा याद दिलाये कि
तमाम पाबन्दियों के बावजूद
हम तुमसे प्रेम जारी रख सकते है
हम तुम्हारे आसमान में
इन्ही पंछी सरीखे
उड़ सकते है
उड़ते रहे है आखिर
एक सदी तक
एक सदी के बाद ही
बदला है वही सब
जो बदलाव तुम देखना चाहती थी।
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
गोधूलि बेला
मन को सहसा याद दिलाये कि
तमाम पाबन्दियों के बावजूद
हम तुमसे प्रेम जारी रख सकते है
हम तुम्हारे आसमान में
इन्ही पंछी सरीखे
उड़ सकते है
उड़ते रहे है आखिर
एक सदी तक
एक सदी के बाद ही
बदला है वही सब
जो बदलाव तुम देखना चाहती थी।
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज