सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

चाँद और फूल

चाँद को 
केवल देखा जा सकता हैं 

फूल को 
सुंघा 
और स्पर्श किया जा सकता हैं 

लेकिन 
वो 
ना चाँद हैं 
और ना फूल 

उसे देखने 
उसकी ख़ुशबू को 
फेफड़े के भीतर 
ना लेने की इजाजत हैं 

और ना छूने की.

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...