रविवार, 27 जनवरी 2019

तुमपर मरना था

तुमपर 
मरना था 
मर गये 

जीना था 
खुलके 
जिये

लेकिन
प्यार में तुम्हारे 
हम जोगी बने 
फिरते हैं 
जहाँ
तहाँ

तुम 
मन्दिर,
मस्जिद,
गुरुद्वारा 
बन 
बैठे हो 
स्थिर 
मेरे ही गाँव के 
पूरब,
पश्चिम,
दक्खिन ओर.

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

2 टिप्‍पणियां:

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...