मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

इश्क़ में जो सितम हो कम हैं

इश्क़ में 
जो सितम हो 
कम हैं 

रास्ते में है 
और जान को जोखिम हैं 
फिरभी कोई गम नही हैं 

चाहता तो बहुत हूँ 
उसपार चला जाऊ 
पर अकेले 
इश्के सड़क पार करना 
नामुमकिन हैं 

तुम हाथ हिला दो 
मेरे ह्दय को बहला दो 
कम से कम 
इस बेसहारा को 
सहारा मिल जायेगा 
आंधी-तूफ़ान से चलते 
बसों, ट्रको 
और लोगो के बीच

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

चाँद और फूल

चाँद को 
केवल देखा जा सकता हैं 

फूल को 
सुंघा 
और स्पर्श किया जा सकता हैं 

लेकिन 
वो 
ना चाँद हैं 
और ना फूल 

उसे देखने 
उसकी ख़ुशबू को 
फेफड़े के भीतर 
ना लेने की इजाजत हैं 

और ना छूने की.

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

तुम्हारा ख्याल सुबहो-शाम हैं


तुम्हारा ख्याल सुबहो-शाम
हैं
लब पे तुम्हारा नाम
और हाथो के लकीरों में
फिरभी तुम नहीं.

तुम नही
समन्दर सरीखी
कि मेरी प्रेम की नईयां आप पार लग जाये

मैंने मदद मांगी थी
खुदा से
कि तुम्हे मुझसे मिलवा दे
पर उसने तिनके जितना भी मदद करना ऊचित न समझा.

मैं एकांकी नहीं
फिरभी एकांकीपन बड़ी शिद्दत से महसूसता हूँ
कि केवल तुम्ही तो नही मिलें
जबकि मिलने को आकुल रहती थी तुम मुझसे.

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 


शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

ऋतुराज ! कहो कुछ आज !

ऋतुराज ! कहो कुछ आज !
आज मन फीका-फीका सा हैं 

हवा में रिक्तता सा हैं 
वो आज झल्लाई नही मुझपर क्योंकर
हैरान हूँ घर लौटकर 

घर पर ढेरो काम हैं 
पर एक काम को छूने से पहले 
लग रहा हैं मैं बीमार हो गया हूँ 
इतना कि
उठा नही जा रहा हैं 
बोला नही जा रहा हैं 
किसीसे कुछ बताना भी नही बन रहा हैं.. 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

तुम्हारे बगैर

तुम्हारे बगैर 
मेरा जीना 
क्या जीना !

हवा को पीना 
जहरीले साँप की तरह 
ऐसे भी जीना 
क्या जीना !

बासंती हुई समग्र पृथ्वी 
मेरा चाँद फिरभी 
चमकना नही चाहता 

ये कैसी हाथापाई हुई 
इश्क़ से कि
जान बसने नही देता 
प्राण निकलने नही देता 

तुम्हारे बगैर 
मेरा जीना 
क्या जीना !

जो ओझल हैं नजरो से 
वो नदी किनारे बैठता हैं 
सुबहो-शाम 
एकबार देखा था बरसों पहले 

लगता हैं 
वो वही हैं 
मोती जैसे अपने नौकरों-चाकरों से 
निकलवाने के लिए 
मुझे 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

मेरी नजर में तू हैं


मेरी नजर में तू हैं 
तेरी नजर में कोई और 

किसीसे तुम प्यार करती हो 
किसीसे मैं भी 

दर्द हम समझते हैं 
बखूबी 
एक-दुसरे का 
पर हम एक-दुसरे से प्यार नही करते 

पर हम लाखो बातें करके भी 
एक-दुसरे से 
अजनबी रहना चाहते हैं 
न जाने क्यों  

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

धुधला-धुधला सा नजर आता हैं

पर्वत के पीछे 
तेरी यादें सोती हैं 

नदी के नीचे 
बहुत गहरें में 
तेरी यादें 
बहती हैं 

मेरे संग 

तेरी यादें 
मेरी नजरों में 
इस कदर समायी हैं कि
धुंधला-धुंधला सा नजर आता हैं 
मेरा समग्र जीवन  

तुम्हारे बगैर 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...