मुझे बादलों के उस पार जाना है
तुम चलोगी क्या !
साथ मेरे
मुझे वहाँ आशियाँ बनाना है
हाथ बटाओगी क्या !
मेरा वहाँ..
अगर चलती तो
साथ मिलकर
बाग लगाते, साग-सब्जियां भी..
एक दूसरे को देखते हुए
पौधों को पानी देते
और ख़ुदको
बहुत ज्यादा सुकून और शांति..
और अपने प्यार को गहरा नीला आसमान देते
स्वछंदता का हाथ तुम्हारे साथ थामकर।
- रवीन्द्र भारद्वाज