जिन्हें मुझसे मिलना था
वो गैरों से मिल गये
जिनसे हमें मिलना था
वो कबका हमें भूल गयें
वक्त-वक्त की बात हैं ये
आखिर वक्त की की शरारत हैं ये
मुझे उनके होठों पर
मुस्कान बनके खिलना था
मगर वो मुझे देखकर
मुस्काना ही भूल गये
मेरे हमदम !
मुझे जुरुरत नहीं अब किसीकी
दोस्ती के हाथ नेताओं से कटवा लिये
रुको ! कुछ देर 'गुरुदेव' के यहाँ
चाय ना सही, पानी जुरूर पिलायेंगे
गज़ल - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार