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बुधवार, 24 अप्रैल 2019

एक तुम्ही थी

तुमसे दूर होने के बाद 
सदा 
ये एहसास रहा 
एक तुम्ही थी जो मुझे अच्छे से समझती थी 

जानती थी हर वो बातें 
जो हरकिसीसे छिपाए रखा था मैंने 

फिर कब मिलना नसीब होगा 
यह सवाल 
मेरे दिलोदिमाग से टकराता रहता है 
दो दीवारों के बीच फेंके गये गेंद की तरह 

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

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सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...