जब घर में दुनिया समा जाये
तो वो घर, घर नही रह जाता
जब छोटे बोलने लगे बेहद
बुजुर्गो की बातें कौन सुने तब
रुत होता हैं रार, तकरार का
हर बखत लड़ने-झगड़ने से हल नही निकलता कोई
'गुरुदेव 'की मानों तो
घर में बना लो अगर शांति तो
मन्दिर नही जाना पड़ेगा
सुबहो-शाम
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार