हम रोक लेते खुदको
अगर तुम बुलायी ना होती
बात जेहन में दबाके रख लेता
अगर मुझे देख-देखकर मुस्कुरायी ना होती
छुट गया जो कोर आंचल का
काश ! उसके नीचे पलभर को सही सुलायी होती
नदी आड़ी-तिरछी बहती चली गयी
काश ! एकबार प्यास बुझा के जाती
हम शराब के नशे में नही होते
अगर बेवफ़ाई का पाठ तुमने ना पढ़ाई होती
गज़ल - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार