इश्क़ में
जो सितम हो
कम हैं
रास्ते में है
और जान को जोखिम हैं
फिरभी कोई गम नही हैं
चाहता तो बहुत हूँ
उसपार चला जाऊ
पर अकेले
इश्के सड़क पार करना
नामुमकिन हैं
तुम हाथ हिला दो
मेरे ह्दय को बहला दो
कम से कम
इस बेसहारा को
सहारा मिल जायेगा
आंधी-तूफ़ान से चलते
बसों, ट्रको
और लोगो के बीच
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज