एक आँसू की कीमत तुम
क्या जानों !
जब दर्द सम्हालें नही
सम्हलता हैं
तो आ ही जाता हैं
आँसू
बाहर
बाहर
आकर भी
आंसू
अगर दर्द को न समझा
पाये
अपना
अपनों को
तो बेकार ही समझों
हैं अपनों की संवेदना !
कविता
– रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र
– गूगल से साभार