तुम कहाँ हो
मैंने मन ही मन पूछा
मन से
मन बहुत कातर रहता हैं
इनदिनों
मुझसे
मुझसे भूल क्या हुई
जो इतना एकांकी हो गया हैं
मेरा जीवन
काश !
कही से कोई ख़ुशबू आये
और महकाये
मेरे मन-मन्दिर को
और कोई आये
मेरा पुराना हित-मीत
और आते ही बताये
कि
वो ठीक हैं
तुझसे दूरियां बनाकर
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज