तुम मेरी थी
तब
जब हम झूठ नही बोला करते थे
साफ-सुथरी बातों पर
तुम्हारे
हम फिदा थे
लेकिन न जाने किसकी नजर लगी
हमारी दोस्ती को
कि तुम साजिश रचने लगी
हमारे खिलाफ।
~ रवीन्द्र भारद्वाज
प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है.. अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो बहार होती बेरुत भी सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना ज्यादा मायने नही रखता यार ! यादों का भी साथ बहुत होता...
वाह!!
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय 🙏 सादर
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन अनुज।
जवाब देंहटाएंसादर
आभार दी 🙏 सादर
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन अनुज।
जवाब देंहटाएंसादर
भावपूर्ण सृजन रविन्द्र जी |
जवाब देंहटाएंजी आभार आपका 🙏 सादर
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंसह्दय आभार आदरणीय
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