एक रात थी
बरसात की
चन्द लम्हों का सफर था वो
हमने तय किया उस सफर को
सदियों से लम्बा
हथेलियां एक-दूसरे से गले मिली थी
छतरी से फिसलके बूंदे
बौछारों से भिंगो रही थी
हमें
सिहरन सी दौड़ती तन-मन में
जब बूंदे बहती
नहर सी
हमारे शरीर के इस छोर से उस छोर
और
और करीब होते जाते थे तब हम।
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
बहुत सुन्दर अनुज
जवाब देंहटाएंमैं चाहती हूँ आप रचना को थोड़े और शब्द दो ताकि आप के भाव और पढ़ने को मिले |
सादर स्नेह
जरूर..दी
हटाएंकोशिश करते है ..
सह्दय आभार सादर 🙏
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति, रविन्द्र।
जवाब देंहटाएंसह्दय आभार आपका आदरणीया
हटाएंजी अत्यंत आभार आपका सादर 🙏
जवाब देंहटाएंभाई रविन्द्र, मैं भी अनिता दी का समर्थन करता हूँ। कमाल लेखन भाई
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार भाई आपका सादर
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