बुधवार, 17 जुलाई 2019

एक रात बरसात की

एक रात थी 
बरसात की
चन्द लम्हों का सफर था वो 

हमने तय किया उस सफर को 
सदियों से लम्बा

हथेलियां एक-दूसरे से गले मिली थी 
छतरी से फिसलके बूंदे 
बौछारों से भिंगो रही थी 
हमें

सिहरन सी दौड़ती तन-मन में 
जब बूंदे बहती 
नहर सी
हमारे शरीर के इस छोर से उस छोर 

और 
और करीब होते जाते थे तब हम।

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार


7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर अनुज
    मैं चाहती हूँ आप रचना को थोड़े और शब्द दो ताकि आप के भाव और पढ़ने को मिले |
    सादर स्नेह

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  2. बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति, रविन्द्र।

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  3. भाई रविन्द्र, मैं भी अनिता दी का समर्थन करता हूँ। कमाल लेखन भाई

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