तू जो लौटा होता
पाया होता बदला हुआ मुझे
जबकि बदलाव मुझमे न था
-तुम कहती थी
तुम्हारे साथ रहते नही बदला
रत्तीभर
लेकिन तुम्हारे जाने के बाद
मैं इतना बदल गया हूँ कि
अगर कोई मेरे ही नाम से मुझे पुकारता है तो
किसी दूसरे शक्स को पुकारने की आवाज सुनाई देती है मुझे !
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार, जुलाई 16, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंइस रचना को "पाँच लिंको का आनंद" में साझा करने के लिए आभार आपका आदरणीया सादर 🙏
हटाएंवाह ... ऐसा एहसास जो प्रेम के एहसास कोकई गुना कर दे ...
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब..सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंवाह !बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंप्रेम में ऐसा होता है अक्सर....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।..
वाह !!!
वाह!बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंऐ नादान आशिक़ ! तू अब तू नहीं रहा, तेरा अपना वुजूद भी नहीं रहा. अब तू उसमें समा गया है.
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