अहसास को जब बुनना शुरू किया
तब नही मालूम था
कि एकदिन यह प्यार का चादर हो जायेगा
जिसे ओढ़कर सारी उम्र काटनी होगी
और उसे
इसका अहसास तक नही होगा शायद
चादर
चाहे जितनी फटी-पुरानी होगी
अपनापन गाढ़ा होता जायेगा
उससे
ये न सोचा था
लेकिन ठीक ऐसा ही हुआ
उस चादर को ओढ़ते-ओढ़ते
रोए बढ़ते गये
शरीर पर
अपनेपन का
और अब अगर उसे उतार भी दे तो भी
वो अहसास नही जायेगा
जिसे ओढ़कर
जिया
आधा से ज्यादा उम्र
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
बहुत भावपूर्ण है एहसास की चादर, जो अनुराग के धागों से बनी है। सस्नेह शुभकामनायें। 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंजी ह्दयतल से आभार आपका आदरणीया सादर 🙏
हटाएंवाह !बेहतरीन सृजन अनुज
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएँ| इस स्नेह से ओत-प्रोत रचना के लिए |
सादर
दी ह्दयतल से आभार आपका सादर 🙏
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंजी ह्दयतल से आभार आपका आदरणीया सादर 🙏
हटाएंअति सुंदर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंजी ह्दयतल से आभार आपका आदरणीया सादर 🙏
हटाएंभावों को संजोती एवं मन में पिरोती सुंदर लेखन। बधाई आदरणीय रवीन्द्र जी।
जवाब देंहटाएंह्दयतल से आभार आपका आदरणीय सादर 🙏
हटाएंजी ह्दयतल से आभार आपका आदरणीया सादर 🙏
जवाब देंहटाएं...बेहतरीन सृजन
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