दिल खोलकर हँसता हूँ
कि सब गम चिड़ियों के झुंड की तरह उड़ जाये
लेकिन एक-दो ऐसी भी चिड़िया है
जो जँगले पे
मेरे दिल के
घर बनाकर रहने लगी है
उन्हें उड़ाना भी नही बनता मुझसे
ना ही दाना खिलाना
सुबह-शाम वो इतना खुश होकर चहकती है कि
मेरी नींद, मेरा चैन दरकने लगता है
खण्डहर वाले मकान में आये झंझावात से गिरने ही वाली दीवार की तरह
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 24 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार आपका सादर 🙏
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंजी आभार आपका सादर 🙏
हटाएंबहुत सुन्दर सृजन अनुज
जवाब देंहटाएंसादर
अनुज.. 26जुलाई को कारगिल दिवस है एक रचना आप की कल आनी चाहिये
आभार आपका दी सादर 🙏
हटाएंजरूर
बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंजी आभार आपका सादर 🙏
हटाएं