प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है.. अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
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सोचता हूँ..
सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो बहार होती बेरुत भी सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना ज्यादा मायने नही रखता यार ! यादों का भी साथ बहुत होता...

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बड़े ही संगीन जुर्म को अंजाम दिया तुम्हारी इन कजरारी आँखों ने पहले तो नेह के समन्दर छलकते थे इनसे पर अब नफरत के ज्वार उठते हैं...
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सघन जंगल की तन्हाई समेटकर अपनी बाहों में जी रहा हूँ कभी उनसे भेंट होंगी और तसल्ली के कुछ वक्त होंगे उनके पास यही सोचकर जी रहा हूँ जी ...
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मान लो दो आदमी और एक औरत थी दोनो आदमी उसी एक औरत पर आकर्षित थे आकर्षण के विषय में जितना मुझे ज्ञान है बताता हूँ - कुशलता और काबिलियत क...
मन की पीड़ा लिख रहे हो क्या जी
जवाब देंहटाएंसादर आभार जी..आपका
हटाएंहाँ, कुछ-कुछ ऐसा ही है..
जिसको लिखा वो पढ़लेगी क्या ?
हटाएंहाँ,पढ़ तो लेगी..
हटाएंपर पता नही वो मेरे ब्लॉग पर आती है कि नही..
बहुत खूबसूरत सृजन
जवाब देंहटाएंआपकी कम्युनिटी(समुदाय)भी सुंदर है
हटाएंजी बहुत-बहुत..धन्यवाद आपका मान्यवर जी !
हटाएं
हटाएंMeena Bhardwaj जी आपका बहुत-बहुत आभार
बहुत कम शब्दों में अपने मन की पीड़ा कह दी. बेहतरीन रचना. Keep it up
जवाब देंहटाएंजी सादर आभार आपका..I will try ..
हटाएं'धनतेरस' और 'दीवाली' की हार्दिक शुभकामनाए..