शाम ढलेएक दिया जलता है
उस दिए को
देखकरएक उम्मीद जगती है
उस दिए की लौह की तरह ही
मेरी प्रीत भी जलती होगीकहीं पर
- ~ 🖋️ रवीन्द्र भारद्वाज
प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है.. अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
शुक्रवार, 14 अगस्त 2020
शाम ढले
रविवार, 24 मई 2020
शनिवार, 16 मई 2020
वो जहाँ भी रहे
वो जहाँ भी रहे
खुश रहे
क्योंकि
जबतक मैं उसके प्यार मे था
अंधेरे में भी उजाला नजर आता था
क्योंकि
जबतक मुझे उसका इंतजार था
तबतक उम्मीद नजर आती था
क्योंकि
जबतक वो दहलीज़ों को लांघती रही
कुछ कर गुजरने का जज्बा था
इस दिल के अंदर
इस दिल के अंदर आखिर
उसके प्यार का समंदर
मचलता था
अनायास ही छलक भी जाता था
उसके प्यार का समंदर
खैर, वो जहाँ भी रहे
खुश रहे
~ रवीन्द्र भारद्वाज
शुक्रवार, 6 मार्च 2020
शनिवार, 1 फ़रवरी 2020
बुधवार, 22 जनवरी 2020
हम तुमसे प्रेम जारी रख सकते है
तुम्हारे गाँव से उड़ते आ रहे पंछी
गोधूलि बेला
मन को सहसा याद दिलाये कि
तमाम पाबन्दियों के बावजूद
हम तुमसे प्रेम जारी रख सकते है
हम तुम्हारे आसमान में
इन्ही पंछी सरीखे
उड़ सकते है
उड़ते रहे है आखिर
एक सदी तक
एक सदी के बाद ही
बदला है वही सब
जो बदलाव तुम देखना चाहती थी।
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
गोधूलि बेला
मन को सहसा याद दिलाये कि
तमाम पाबन्दियों के बावजूद
हम तुमसे प्रेम जारी रख सकते है
हम तुम्हारे आसमान में
इन्ही पंछी सरीखे
उड़ सकते है
उड़ते रहे है आखिर
एक सदी तक
एक सदी के बाद ही
बदला है वही सब
जो बदलाव तुम देखना चाहती थी।
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
रविवार, 29 दिसंबर 2019
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