प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है.. अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
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सोचता हूँ..
सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो बहार होती बेरुत भी सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना ज्यादा मायने नही रखता यार ! यादों का भी साथ बहुत होता...

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बड़े ही संगीन जुर्म को अंजाम दिया तुम्हारी इन कजरारी आँखों ने पहले तो नेह के समन्दर छलकते थे इनसे पर अब नफरत के ज्वार उठते हैं...
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सघन जंगल की तन्हाई समेटकर अपनी बाहों में जी रहा हूँ कभी उनसे भेंट होंगी और तसल्ली के कुछ वक्त होंगे उनके पास यही सोचकर जी रहा हूँ जी ...
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मान लो दो आदमी और एक औरत थी दोनो आदमी उसी एक औरत पर आकर्षित थे आकर्षण के विषय में जितना मुझे ज्ञान है बताता हूँ - कुशलता और काबिलियत क...
मस्त है।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(0२-०२-२०२०) को "बसंत के दरख्त "(चर्चा अंक - ३५९९) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी
बहुत बढ़िया 👌👌
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