गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

जबसे मैं तुमसे बिछड़ गया

तुम बिल्कुल नही बदली 
वही ढंग मुस्कुराने का 
वही संगदिली रखती हो तुम अबभी 

अबभी परायेपन का आग नही सुलगा 
तुम्हारे अंदर 
जानता हूँ 
तुम्हारे साथ क्या कुछ नही गुजरी हैं 

अबभी तबियत खराब रहती होंगी न तुम्हारी 
फिरभी जिन्दगी को खुलकर जीती हो 
इतनी कि किसीको भनक तक न लगे 
कि तुम्हें कितना दर्द होता हैं 
जबसे मैं तुमसे बिछड़ गया 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

विसर्जित कर आया मैं

विसर्जित कर आया मैं 
तेरा दिया सबकुछ 

लाखो बार 
देखने पर 
देख लिया करते थे 
बेमन ही 
एक-दो बार 

वो नजर 

तुम्हें पाने की चाहत धरे 
जेब में रूपए-पैसे की तरह 
भटकते वहाँ
जहाँ एक्का-दुक्का ही गये होंगे तुम 

वो आवारगी

मुझसे बोलने-बतियाने के लिए 
तुम्हें फुर्सत कब थी 
जबकि मेरी पूरी जिन्दगी प्यार की 
फुर्सत से तुम्हें सोचने 
सराहने में गुजरी हैं 

वो फुर्सत 

तालाब पर 
जैसे कागज की नाँव तैर रही हो 
हजारो बातें सोच-सोचकर
लिखा करता था 
आधी रात में 
तुम्हारे अनुपस्थिति में 
अपने गहरे एकांकीपन में 

वो प्रेम-पत्र 

सोचता था 
किसीदिन यु भी होंगा 
तुम्हारी नजर प्यार से उठेंगी मेरी तरफ 
पंछी के तरह फडफडाते हुए 
आ लिपटोगी 
मेरे सीने से 

वो सोच 

विसर्जित कर आया मैं 
वो सबकुछ 
जिसका न होना 
तय था 
बहुत पहले से 

वो होने न होने की वजह 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

जो होना होता हैं

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जो होना होता हैं
वो कैसे भी होता हैं

और जो नहीं होना होता हैं
वो कैसे भी नही होता हैं

लेकिन
जो करना होता हैं
कर लेना चाहिए
एक आध बार
तकदीर से लड़ लेना चाहिए
ताकि कोई कसर ना रह जाये कल को
कहने में
अरे.....हमने तो......


कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

मुस्कुराता रहूँगा

रास्तें याद रहेंगे 
बातें इन्ही वादी में गूंजेंगी 

मुस्कान ख़ुशबू की तरह 
बिखरी पड़ी 
मिलेंगी 

तुम्हारी 

इतनी खुबसुरत हो यार तुम 
कि
अप्सराओं को भी तुमसे  जलन हो जाये 

इतनी खुशियाँ हैं लबो पे तुम्हारे 
कि
सदियों मैं सोच-सोच ये 
कि
कैसे मुस्काई थी तुम उसदिन 
मुझे देखकर 

मुस्कुराता रहूँगा

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

रविवार, 24 फ़रवरी 2019

मैं बिखरता ही रहा

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जीते जी
मुझे कितना कष्ट झेलना पड़ा
सिर्फ तुम्हारे वजह से

खाब
एहसास
याद
का मानदंड काम न आया
और मैं बिखरता ही रहा

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

वक्त की की शरारत हैं ये

Image result for मुझे उनके होठों पर मुस्कान बनके खिलना था
जिन्हें मुझसे मिलना था 
वो गैरों से मिल गये 

जिनसे हमें मिलना था 
वो कबका हमें भूल गयें 

वक्त-वक्त की बात हैं ये 
आखिर वक्त की की शरारत हैं ये 

मुझे उनके होठों पर 
मुस्कान बनके खिलना था 
मगर वो मुझे देखकर 
मुस्काना ही भूल गये 

मेरे हमदम !
मुझे जुरुरत नहीं अब किसीकी 
दोस्ती के हाथ नेताओं से कटवा लिये

रुको ! कुछ देर 'गुरुदेव' के यहाँ 
चाय ना सही, पानी जुरूर पिलायेंगे 

गज़ल - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019

वो करार नहीं

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इन वादियों और फिजाओं में 
वो करार नहीं 
जो मिलता था 
हमसे गले 
वर्षो पहले 

पंछी से 
बेगाने हो गये तुम 

नदी सी 
पवित्र हो गयी तुम 

मिट्टी सी 
सोंधी हो गयी तुम 

अबभी इक टिस सी उठती हैं 
जब कभी याद आता हैं 
कैसे भूल गये तुम मुझें 

याद ही हैं कि
तुम सूरज की किरणों सी गिरती हो 
मुझपर 
वरना 
साक्षात् देखे एक-दुसरे को 
अरसा हुआ 

मूर्छित होने लगता हैं ये जीवन 
जब कोई लंगोटिया यार जिक्र कर देता हैं 
अब्बे वो कैसी हैं 
तुम्हारे बगैर तो जीना ही नही चाहती थी एकपल 

मुझे याद हैं 
तकरीबन चार-पाँच बरस पहले 
उसे आयी थी याद मेरी 
तब कॉल करके पूछी थी 
कैसे हो !

बड़ा अटपटा सा लगा था 
कैसे हो – सुनकर 

जवाब हलक में अटक गया था 
और कॉल भी कट चुका था 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019

यादें

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सदियाँ बीती
बतियाँ बीती
बीते जीवन के
सुख, चैन

बीते वक्त में
यादों के लम्हे
कागज की नाँव होती हैं
स्मृति के पानी पर
तैरती रहती हैं जो
हररोज़.

हररोज़ ही डूब जाती हैं
ये यादें
जानबुझकर
या जाने-अनजाने में ही
अवसाद की लहरों से ठोकर खा 
औंधे मुँह

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


बुधवार, 20 फ़रवरी 2019

एक तरफ़ा सफ़र

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एक तरफ़ा सफ़र मैंने तय किया 
प्यार में 

था भरोसा 
एकदिन प्यार हो जायेगां तुम्हें 
मेरे प्यार पर 
और हम साथ-साथ चलेंगें 

लेकिन नही 
हुआ 
मेरा सोचा 

कहते भी हैं लोग 
कि सोचा सच नहीं होता कभी 

मैंने सहस्रों कविताएँ रच डाली 
चित्र भी 

पर शायद इतना काफी न था 
मेरी सृजनशीलता 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

तुमसे मिलकर

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तुमसे मिलकर 
जानां 
जिन्दगी क्या हैं !

वैसे तो जिन्दगी धुप लगती थी 
ग्रीष्म की 

पर 
अब जानां 
तुमसे प्यार करके 
जिन्दगी 
जाड़े में खिली 
धूप हैं 

पर्वत के पीछे 
कोई रहता हैं 
वो चाँद हैं 
जाना 
तुमसे प्रणय-सम्बन्ध बनते-बनते 
वो मेरा एकलौता दोस्त बन गया हैं 

अब रात 
झींगुरों से नही गूंजती 
दिन 
भौरें सा भागमभाग में नही बीतता 

अब करीने से सुबह होती हैं 
और शाम दुल्हन सी सज-धज के आती हैं 
मेरे जीवन के दरख्त पे 

तुमसे मिलकर 
जाना 
प्यार क्या हैं 
ऐतबार क्या होता हैं 
और एहसास क्या हैं  

इन सबसे बड़ी चीज तो मैं बताना ही भूल गया 
यार तुम हो बेहद नायाब 
शुक्र हैं 
मुझे तुमसे प्यार हुआ.

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

रविवार, 17 फ़रवरी 2019

बड़ा कदम हम उठायेंगे..


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सादर नमन ....
मेरे भाइयों !

प्रभू तुम्हारी आत्मा को
शांति दे
मित्रो !

छुपकर हमला करना
गीदड़ो को आता हैं
हिन्दुस्तान तो शेर हैं

और शेर के बच्चो की कुर्बानी
जाया नहीं जायेगीं

द सर्जिकल स्ट्राइक
से
बड़ा कदम
(शोक मना लेने दो मेरे अजीज दुश्मनों)
हम उठायेंगे..

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

वो गुम हो गयी हैं

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वो ऐसे गुम हो गयी हैं 
जैसे हवा 

हवा के निशां नही होते 
उसके भी नही हैं 

कितने पतझर 
कितने बसंत 
देखे 
अकेले 
उसे इसकी खबर ही नहीं 

कहते हैं 
पृथ्वी गोल हैं 
जहाँ से चलोगे 
वही आकर ठहरोगे 
लेकिन 
मेरे जीवन में 
यह सच 
होता हुआ नही लगा 
कभी मुझे 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

चित्र - गूगल से साभार

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

पलाश को मैंने देखा नहीं अभीतक

पलाश को 
मैंने देखा नहीं अभीतक 
साक्षात् 

या हो सकता हैं 
देखा हूँगा 
पर ठीक से 
याद नहीं 
कब 

सूना हैं 
बसंत यही से कूदता हैं 
धरती पर 

पलाश का पुष्प 
लाल होता हैं 
खून से भी ज्यादा लाल 
पढ़ा हैं 
अनेकानेक कविताएँ 
पलाश को स्पर्श करती हुई 

पलाश 
कविजन को 
भाता हैं बहुत 
तभी तो देखते ही 
पलाश पर 
रच डालते हैं कविताएँ 
कि सदियों तक 
खिला रहे 
ठीक ऐसे ही 
जैसे अभी खिला होता हैं 

सूना हैं 
वर्ष में सिर्फ एकबार ही 
खिलता है पुष्प इसपर 
और जल्द ही 
विलुप्त भी हो जातें हैं 

जिसदिन 
मेरे भाग खुलेंगे 
देख ही लूंगा 
भाई पलाश तुमको

- रवीन्द्र भारद्वाज



पलाश को हरकोई देख रहा हैं

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बसंत को 
हरकोई देख रहा हैं 

बसंत हैं ही ऐसा 
मन को मोह लेनेवाला 


पलाश को 
हरकोई देख रहा हैं 

पलाश हैं ही ऐसा
आत्मा को लुभा देनेवाला


आम का बौर 
हरकोई देख रहा हैं 

बौर हैं ही ऐसा 
पंछी क्या, मानव भी गुनगुनाने लगता हैं 
फगुआ 


सरसों को 
हरकोई देख रहा हैं 

सरसों का जोबन 
हैं ही गदराया 


मुझे कोई नही देख रहा 
जबकि मैंने ही रंग भरे 
आकार ढले 
इनके 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

अंदाजा लग जायेगां तुम्हें

मेरे प्यार के वादियों से 
गुजरों
किसीदिन 

अंदाजा लग जायेगां तुम्हें 
कि कितना प्यार करता था मैं 
तुमसे 

नजरें बिछाए रखी मैंने कालीन सी 
एक उम्र तक 

उस उम्र तक 
तुम आशना थे 
मैं आवारा 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

मेरी जान !

मेरे हित की मत सोचो....मेरी जान !

तुम्हारा अगर हित हो तो मुझसे प्रेम जारी रखो....मेरी जान !

मेरी जान !
सरसों का जोबन देखो 
और आम पर बौर 
कितना रोमांचित कर रहे हैं 
नजरो को हमारे 

आधी रात में उठकर बरसात देखो...
सुनो राग मल्हार 
..प्रेम की थाप पर....मेरी जान !

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 



मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

इश्क़ में जो सितम हो कम हैं

इश्क़ में 
जो सितम हो 
कम हैं 

रास्ते में है 
और जान को जोखिम हैं 
फिरभी कोई गम नही हैं 

चाहता तो बहुत हूँ 
उसपार चला जाऊ 
पर अकेले 
इश्के सड़क पार करना 
नामुमकिन हैं 

तुम हाथ हिला दो 
मेरे ह्दय को बहला दो 
कम से कम 
इस बेसहारा को 
सहारा मिल जायेगा 
आंधी-तूफ़ान से चलते 
बसों, ट्रको 
और लोगो के बीच

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

चाँद और फूल

चाँद को 
केवल देखा जा सकता हैं 

फूल को 
सुंघा 
और स्पर्श किया जा सकता हैं 

लेकिन 
वो 
ना चाँद हैं 
और ना फूल 

उसे देखने 
उसकी ख़ुशबू को 
फेफड़े के भीतर 
ना लेने की इजाजत हैं 

और ना छूने की.

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

तुम्हारा ख्याल सुबहो-शाम हैं


तुम्हारा ख्याल सुबहो-शाम
हैं
लब पे तुम्हारा नाम
और हाथो के लकीरों में
फिरभी तुम नहीं.

तुम नही
समन्दर सरीखी
कि मेरी प्रेम की नईयां आप पार लग जाये

मैंने मदद मांगी थी
खुदा से
कि तुम्हे मुझसे मिलवा दे
पर उसने तिनके जितना भी मदद करना ऊचित न समझा.

मैं एकांकी नहीं
फिरभी एकांकीपन बड़ी शिद्दत से महसूसता हूँ
कि केवल तुम्ही तो नही मिलें
जबकि मिलने को आकुल रहती थी तुम मुझसे.

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 


शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

ऋतुराज ! कहो कुछ आज !

ऋतुराज ! कहो कुछ आज !
आज मन फीका-फीका सा हैं 

हवा में रिक्तता सा हैं 
वो आज झल्लाई नही मुझपर क्योंकर
हैरान हूँ घर लौटकर 

घर पर ढेरो काम हैं 
पर एक काम को छूने से पहले 
लग रहा हैं मैं बीमार हो गया हूँ 
इतना कि
उठा नही जा रहा हैं 
बोला नही जा रहा हैं 
किसीसे कुछ बताना भी नही बन रहा हैं.. 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

तुम्हारे बगैर

तुम्हारे बगैर 
मेरा जीना 
क्या जीना !

हवा को पीना 
जहरीले साँप की तरह 
ऐसे भी जीना 
क्या जीना !

बासंती हुई समग्र पृथ्वी 
मेरा चाँद फिरभी 
चमकना नही चाहता 

ये कैसी हाथापाई हुई 
इश्क़ से कि
जान बसने नही देता 
प्राण निकलने नही देता 

तुम्हारे बगैर 
मेरा जीना 
क्या जीना !

जो ओझल हैं नजरो से 
वो नदी किनारे बैठता हैं 
सुबहो-शाम 
एकबार देखा था बरसों पहले 

लगता हैं 
वो वही हैं 
मोती जैसे अपने नौकरों-चाकरों से 
निकलवाने के लिए 
मुझे 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

मेरी नजर में तू हैं


मेरी नजर में तू हैं 
तेरी नजर में कोई और 

किसीसे तुम प्यार करती हो 
किसीसे मैं भी 

दर्द हम समझते हैं 
बखूबी 
एक-दुसरे का 
पर हम एक-दुसरे से प्यार नही करते 

पर हम लाखो बातें करके भी 
एक-दुसरे से 
अजनबी रहना चाहते हैं 
न जाने क्यों  

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

धुधला-धुधला सा नजर आता हैं

पर्वत के पीछे 
तेरी यादें सोती हैं 

नदी के नीचे 
बहुत गहरें में 
तेरी यादें 
बहती हैं 

मेरे संग 

तेरी यादें 
मेरी नजरों में 
इस कदर समायी हैं कि
धुंधला-धुंधला सा नजर आता हैं 
मेरा समग्र जीवन  

तुम्हारे बगैर 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

पहाड़

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ऊँचा
बहुत ऊँचा हैं 
पहाड़ 

पहाड़ के बाशिंदे 
पहाड़ से भी ऊपर 
चढने का ख्वाहिश रखते हैं 

पहाड़ो से 
निकली नदीयाँ 
पिता कहके पुकारती हैं उन्हें 

पिता नही चाहता 
उसकी पुत्री 
सदा-सदा के लिए 
दूर चली जाये

नदीयों को 
सागर पियाँ से 
मिलने की लालसा हैं बहुत प्रबल 

इसलिए 
वह अपने पिता की छत्रछाया को तजकर 
बहुत दूर निकल चुकी हैं 

पिता बूढा हो चला हैं 
उसके घुटने में दर्द होता हैं 
असह्य 

वह अगोरता हैं 
कब उसकी पुत्रियाँ आये 
और एक गिलास पानी देकर 
झट बाम लगा दे..

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

चित्र - गूगल से साभार 



सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

तुम कहाँ हो

तुम कहाँ हो 
मैंने मन ही मन पूछा 
मन से 

मन बहुत कातर रहता हैं
इनदिनों 
मुझसे 

मुझसे भूल क्या हुई 
जो इतना एकांकी हो गया हैं 
मेरा जीवन 

काश !
कही से कोई ख़ुशबू आये 
और महकाये 
मेरे मन-मन्दिर को 


और कोई आये 
मेरा पुराना हित-मीत 
और आते ही बताये 
कि
वो ठीक हैं 
तुझसे दूरियां बनाकर

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज