मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

इश्क़ में जो सितम हो कम हैं

इश्क़ में 
जो सितम हो 
कम हैं 

रास्ते में है 
और जान को जोखिम हैं 
फिरभी कोई गम नही हैं 

चाहता तो बहुत हूँ 
उसपार चला जाऊ 
पर अकेले 
इश्के सड़क पार करना 
नामुमकिन हैं 

तुम हाथ हिला दो 
मेरे ह्दय को बहला दो 
कम से कम 
इस बेसहारा को 
सहारा मिल जायेगा 
आंधी-तूफ़ान से चलते 
बसों, ट्रको 
और लोगो के बीच

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

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