शनिवार, 29 जून 2019

मजदूर

मजदूर 
वो लोग होते है 
जो मजबूर होते है 

हालात के मारे 
देखने मात्र से लगते है बेचारे
मजदूर वो लोग होते है 

मजदूर वो लोग होते है 
जिनके हित का सोच भी नही सकते 
बहुत बड़े-बड़े लोग

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार


गुरुवार, 27 जून 2019

बारिश में

हल्की बारिश में हाथ फैलाकर वो नाँची थी 
कौतुहल से भरा मन मेरा नाँचा
उसे इतना खुश देखकर

उसकी गम्भीरता देखकर डर लगता था 
उसके चेहरे से 
वो इतना खुश तो कभी नही दिखी थी 
किसीको 

कल उसके पिता लौटे थे घर 
तड़ीपार हो चुके है जो 
(किसीसे पूछने पर पता चला)

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार



मंगलवार, 25 जून 2019

मिलना नही हुआ सदियो तलक

कहाँ तुम थी 
कहाँ मै था कि
मिलना नही हुआ सदियो तलक 

जबकि एक जैसे हालातो से 
हम कितनी ही बार टकराये
चकराये 

मगर आस बधाने भी नही आयी तुम 
हवा के एक झोंका के तरह भी

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - सोमनाथ सेन 

रविवार, 23 जून 2019

कौन सा रिश्ता

वो जो बातें थी 
बेतरतीब सी 
उनका कोई न कोई मकसद तो जरूर होगा
कहने और सुनने का 

तुम यू ही नही रहना चाहते थे करीब मेरे
कोई न कोई रिश्ता तो जरुर बनाना चाहते होंगे
है ना

यार ! मैने पूछा भी नही कभी तुमसे 
(कौन सा रिश्ता)
और तुमने भी नही कहा कभी कुछ

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार


शनिवार, 22 जून 2019

काश ! तू मेरा होता

काश ! तू मेरा होता 
मैं जमाने को यह कहकर छोड़ती कि 
मुझे अब किसी और की जरूरत नही।

तेरे साथ जीती-मरती 
तेरे बाजुओं में दम तोड़ती
काश ! मेरे प्यार पर तनिक भी तुमको भरोसा होता 

मैं लड़-झगड़ लेती सबसे 
सबसे बैर लेकर भी 
खुश रहती
तेरे साथ 
काश ! तू मेरा हमराही होता।

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


बुधवार, 19 जून 2019

उड़ जाओ परिंदों

उड़ जाओ परिंदों 
बहेलिया हमी लोगों के बीच बैठा है 

तुम फर्क नही कर पाओगे कि 
कौन यहाँ चोर है और कौन साहू 

शक की कोई गुंजाइश ही नही उठती 
फिर तो

इंसानो में दरिंदगी इतनी पली-बढ़ी है कि 
अभीभी मानव का आदिम होने का ही आभास होता है 

 नृशंसता और बर्बरता का जमाना गया नही है  
जरा सोचिए तो 
कितनी सभ्यताएं हम लांघ चुके है 
फिरभी सभ्य हुए है हम कितने !

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार


सोमवार, 17 जून 2019

इंतजार

दिनभर दरवाजा खुला रहता है
लगभग आधी रात को बंद होता है

वह उठती है सुबह-सवेरे
और सोती है देर रात-अंधेरे

उसमे कर्तव्यपरायणता इस कदर समा गई है कि
भूल गई है खुदको सँवारना
कि कैसे किशोरावस्था में सजने संवरने में खूब मन लगता था उसका

और घूमने की बात छिड़ते ही 
वह खुश हो जाती थी खुली खिड़की सी

दरअसल, वो घर से निकले ही नही की 
इंतजार की सुर छेड़ देती है उसकी अंतरात्मा

कभी-कभी यू भी होता है कि 
वो घर मे सो रहे होते है
और वह किसी इंतजार में गुम रहती है

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


रविवार, 16 जून 2019

तुम याद आयी

तुम याद आयी यू कि
बरखा से पहले बौछार आये

तुम इस तरह से बरसी 
कि भीगा-भीगा तन जलने लगा 

प्रीत जो भुलाई थी उसकी लपटों से 
मैं पिघलने लगा मोम सा

अब कैसे लौटू तेरी तरफ 
मान लो मैं किसी पिजड़े में हूँ 
और चाबी डुबो दी गई है समुद्र में

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

बुधवार, 12 जून 2019

कुछ कदम और

रूह को रूह से मिलने दो 

अभी कुछ कदम और चलना है बाकी 
चलने दो 

वहाँ से हम-तुम एक हो जायेंगे

और सारी दुनिया अकेली

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज



सोमवार, 10 जून 2019

प्रीत की डगर पर

अनजानी सी प्रीत की डगर पर 
जब मैं चला था 
एक तुमपर ही भरोसा था तब 

बीच डगर में 
टूट गया भरोसा 
फिर प्यार की बुनियाद ही खिसकने लगी 

और एकदिन प्यार का नामोनिशान तक 
लूट गया 
बेदर्दी जमाने ने
और बचा-खुचा मेरी माशूका ने

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 


शनिवार, 8 जून 2019

ठहरना नही है

तुम आये थे यही सोचकर 
ठहरना नही है 

वरना 
बैठकर 
आधेक घण्टे 
बतियाते

मेरे अतिथि-सत्कार का लुत्फ उठाते जरूर 

पता नही तुम क्या देखने आये थे 
मुझे 
या यह घर 
जो कभी हमारा अपना हुआ करता था

सबकुछ बिखरा-बिखरा भी देखकर 
सजाकर करीने से रखना भी 
उचित ना समझा 
मेरा और तुम्हारा विगत चार वर्ष 
तलाक़ के बाद के

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

गुरुवार, 6 जून 2019

कितनी दफा

कितनी दफा शाम को ढलते देखा है 
रात में 

कितनी दफा आधी रात के बाद लिखी है कविता 
अतिशय प्रणय महसुसकर 

तुम कितनी दफा मिली 
लेकिन हर दफा हाथ मेरा खाली रहा 
तुम्हारा प्रेम मेरे अंजुरी में पानी जैसा आया था न
हरबार

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 4 जून 2019

बीते दिनों में

बीते दिनों में 
कुछ-कुछ तुम बची हो 
कुछ-कुछ हम बचे है 

बाकी सब नदारद हो चुका है
चंचल चितवन
रुई के फाहे सी नर्म बातें
इक्का-दुक्का अनायास हुई मुलाकातें 

चौक
गली 
मन्दिर
और पगडण्डी
टूटे-फूटे खण्डहर से दिखते है 

कहाँ तुम बस गयी हो 
कि इधर कभी आना ही नही हुआ 
तुम्हारा 

और कहाँ मैं हु कि
दूर-दूर तक दिखाई ही नही देती
तुम।

रेखचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

रविवार, 2 जून 2019

जिस तन को लगे वही जाने

 
पलको पे सजाके रखा था 
तुम्हें 
क्या तुम्हे इसका एहसास नही 

तुम जिसे दिल से दबाये रखी हो 
उसका एहसास तो होगा न तुम्हे
बहोत 

खैर छोड़ो जिस तन को लगे वही जाने 
क्या होता है प्यार, जज्बात, एहसास से हासिल दर्द

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


शनिवार, 1 जून 2019

कवि की क्या जिंदगी !

कवि की क्या जिंदगी !

बस यू समझ लीजिए
जैसे रवि जलता है अपने से लिपटी आग में 

ठीक उसी तरह कवि जलता है 

लेकिन गम की परायी आग में

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार