तुम याद आयी यू कि
बरखा से पहले बौछार आये
तुम इस तरह से बरसी
कि भीगा-भीगा तन जलने लगा
प्रीत जो भुलाई थी उसकी लपटों से
मैं पिघलने लगा मोम सा
अब कैसे लौटू तेरी तरफ
मान लो मैं किसी पिजड़े में हूँ
और चाबी डुबो दी गई है समुद्र में
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
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