हल्की बारिश में हाथ फैलाकर वो नाँची थी
कौतुहल से भरा मन मेरा नाँचा
उसे इतना खुश देखकर
उसकी गम्भीरता देखकर डर लगता था
उसके चेहरे से
वो इतना खुश तो कभी नही दिखी थी
किसीको
कल उसके पिता लौटे थे घर
तड़ीपार हो चुके है जो
(किसीसे पूछने पर पता चला)
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
इस रचना को 'पांच लिंको का आनंद' में साझा करने के लिए आभार आपका सादर 🙏
हटाएंअप्रतिम ।
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