मंगलवार, 4 जून 2019

बीते दिनों में

बीते दिनों में 
कुछ-कुछ तुम बची हो 
कुछ-कुछ हम बचे है 

बाकी सब नदारद हो चुका है
चंचल चितवन
रुई के फाहे सी नर्म बातें
इक्का-दुक्का अनायास हुई मुलाकातें 

चौक
गली 
मन्दिर
और पगडण्डी
टूटे-फूटे खण्डहर से दिखते है 

कहाँ तुम बस गयी हो 
कि इधर कभी आना ही नही हुआ 
तुम्हारा 

और कहाँ मैं हु कि
दूर-दूर तक दिखाई ही नही देती
तुम।

रेखचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

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