सोमवार, 10 जून 2019

प्रीत की डगर पर

अनजानी सी प्रीत की डगर पर 
जब मैं चला था 
एक तुमपर ही भरोसा था तब 

बीच डगर में 
टूट गया भरोसा 
फिर प्यार की बुनियाद ही खिसकने लगी 

और एकदिन प्यार का नामोनिशान तक 
लूट गया 
बेदर्दी जमाने ने
और बचा-खुचा मेरी माशूका ने

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 


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