प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है.. अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
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सोमवार, 31 दिसंबर 2018
रविवार, 30 दिसंबर 2018
शनिवार, 29 दिसंबर 2018
शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018
चलता चल..!
Art by Ravindra Bhardvaj |
जलता चल !
मेरे-तेरे भाग्य का फैसला
करेगा वो ऊपर वाला ही !
तू अपनी ही मति से
नदी की गति सी बहा कर !
ठहरना
खरगोश को पड़ता है
कछुआ सा चाल
चलता चल..!
सूरज
सुबह का इन्तजार करता है
चाँद
रात का
इन्तजार करता रह
तुम्हारे उदय में अभी समय शेष है
चल
अपने गन्तव्य पर
चलता चल..!
- रवीन्द्र भारद्वाज
गुरुवार, 27 दिसंबर 2018
बुधवार, 26 दिसंबर 2018
मंगलवार, 25 दिसंबर 2018
सोमवार, 24 दिसंबर 2018
रविवार, 23 दिसंबर 2018
शनिवार, 22 दिसंबर 2018
हवा और समय
Art by Ravindra Bhardvaj |
तुम्हारे साथ होने का एहसास होता है
जब हवा रुक जाती है
तुम्हारे गुम हो जाने का एहसास होता है
जब-जब गुजरता हूँ
गाँव के इकलौते पुराने पीपल के पेड़ के नीचे से
तुम्हारे गुनगुनाने का आवाज़ सुनता हूँ
हवा
और समय
तुम्हारे मीत है
जब चाहो भेज देती हो
जब चाहो बुला लेती हो.
- रवीन्द्र भारद्वाज
शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018
गुरुवार, 20 दिसंबर 2018
बुधवार, 19 दिसंबर 2018
मंगलवार, 18 दिसंबर 2018
उनदिनों हँसती भी थी तुम खूब
अब देखकर तुमको
यकीन नही होता
कि तुम वही हो
जो मुझपे मरती थी कभी
गालो पर
हल्का सा गढ्ढा
बनता था
उनदिनों हँसती भी थी तुम खूब
हवा में उड़-उड़ जाती थी
रेशम की वो गुलाबी ओढ़नी
जिसे महीने में दो-एक बार लगाती थी तुम
जिस किसीदिन
मैं तुम्हारा पीछा करता
मुझसे पीछा छुड़ाने के लिए
साईकिल का पैन्डील तेज मारती
तब तुम सातवे आसमान पर पहुँचना चाहती थी न !
- रवीन्द्र भारद्वाज
सोमवार, 17 दिसंबर 2018
रविवार, 16 दिसंबर 2018
मुस्कुराओ कि..
Art by Ravindra Bhardvaj |
हर गम बोझ सा उतर जाये
रुत बसंत का
फिरसे आ जाये
लम्बी जुदाई के बाद
वस्ल की आरजू काश ! आज ही पूरी हो जाये..
सुनाओ कि
झिझक न लगे
कोई बात कहने में..
रोयेंगे हम आज साथ-साथ
बहाना निकल ही आयेगा
कोई न कोई
अफ़सोस का
ख़ुशी के आंसू भी बहेंगे
जीवन से गहरे असंतोष के बाद
तुमसे फिरसे मिलने पर.
- रवीन्द्र भारद्वाज
शनिवार, 15 दिसंबर 2018
शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018
गुरुवार, 13 दिसंबर 2018
बुधवार, 12 दिसंबर 2018
मंगलवार, 11 दिसंबर 2018
सोमवार, 10 दिसंबर 2018
रविवार, 9 दिसंबर 2018
रुक जाओ ना
मैंने तो ये सोचा ही नही था
तुम आई हो इसबार भी चली जाओगी
होठो पर हँसी रखकर मेरे
जेहन में लिखकर अल्फाज़ प्यार के
कल चली जाओगी न
ना जाना
मुझे छोड़कर तन्हा
तन्हा सफर नही कटता
यादें कटती है
होठो पर
होठ धर दो अपने
बाहों में सिमट जाओ
यू कि पूरी दुनिया लगु मैं तेरी
तू मुझपे इतना क्यू बिफरती है
मैं क्या कोई अजनबी हू
नही न
तब फिर
रुक जाओ ना
इस एक जनम के लिए
प्लीज..
अगले जनम का मैं नही जानता.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज