सोमवार, 17 दिसंबर 2018

ठहर जाओ

मेरी नजर में, तू है 
तेरी नजर में, मैं 

अब जाना कहां..
भूलता जा रहा हूँ मैं यह 

शाम ढलने को है 
डर लग रहा है 
फिरसे तन्हा होनेवाला हूँ मैं.

एकबारगी 
ठहर जाओ 
मेरे घर 
घर का कोना-कोना 
हँसने लगेगा 
चल चलो न अपने घर 
- रवीन्द्र भारद्वाज 

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