प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है.. अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
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शुक्रवार, 30 नवंबर 2018
गुरुवार, 29 नवंबर 2018
बुधवार, 28 नवंबर 2018
मंगलवार, 27 नवंबर 2018
मानांकि इश्क हमारा मूक है
हम शिकवा करे
कि शिकायत करे
है जब तू रूबरू
भूलके सब शिकवे-गिले
क्यों ना हम प्यार करे !
ये भी मुमकिन है
हम जता ना पाये वो प्यार
जो बरसों पहले आग जैसे धधकता था
ये भी मुमकिन है
राख की ढेर में
कोई तो चिंगारी दबी होंगी
जो बुझी नही होंगी अभीभी.
अभीभी
कुछ तो होंगा हमारे दरम्यान
मानाकि
इश्क हमारा मूक हो जिया है
बरसों तक.
रेखाचित्र व कविता -रवीन्द्र भारद्वाज
सोमवार, 26 नवंबर 2018
शनिवार, 24 नवंबर 2018
बहुत हद तक मुमकिन है..
तुम्हारे कदमों के निशान अब नही
यहाँ
यही तुम चले थे
थिरकें थे
लगभग नाँचे भी थे
अब यहाँ बहुत गर्मी पड़ती है
दिल में बेचैनी सी रहती है
शाम फ़ीका-फ़ीका लगता है
तुम्हारे बिना
रातें
बंजर हो गई है
बहुत हद तक मुमकिन है
तुम मुझे भूल गई होंगी
पर भूलने की क्या वजह रही होंगी
सोचता रहता हू..
मैंने तो ये भी सोच लिया था
मैं तुम्हारे लायक नही..
क्या यह सच है जी !
तुम मुझे धक्का दे दीए न
स्वर्ग से
नर्क में.
शुक्रवार, 23 नवंबर 2018
नदी को कब रोंका था मैंने
नदी को कब रोका था मैंने
वह बहती ही रही
अनवरत
पर मुझे अपने अंदर नही रहने दी
हालांकि शीतलता, निर्मलता बहुत गहरे
तक थी
उसमे.
एक भूल या गलती थी मेरी कि
मेरे आस-पास भी नही भटकती दिखती
तुम्हारी रूह.
हालांकि
मुझसे जबरन लिपटी रही थी
सदियों तक
तुम्हारी रूह.
बुधवार, 21 नवंबर 2018
मंगलवार, 20 नवंबर 2018
तीन बन्दर
मेरा उसका कुछ-कुछ चल रहा था
मान लो प्यार-मोहब्बत जैसा
हम निगाहों से बाते करते थे
और बातो से मुलाकाते
हम एक-दुसरे के बहुत ही करीब थे
पर ना जाने किसकी नजर लगी
हम एकायक दूर होने लगे
एकदिन मुड़कर पीछे देखे
गौर से उसे
लगा-
मैंने तो खो दिया है उसे
वो नायाब थी
और बहुत कुछ हो गई थी मेरी
मान लो जिन्दगी की पर्याय बन चुकी
थी मेरी
और मैंने गौर किया
वो बदल चुकी है
इतना
जितना मौसम बदल जाता है..
वो किसी गैर नही
मेरे अपने के तरफ मुड़ चुकी थी
या यु कहे वो जुड़ना चाहती थी उससे
मैंने भी मन बना लिया था कि
उसे रोकूंगा नही
जुड़ने से
पर हरबार मुझे देखकर जाती थी वो
मेरे अपने के पास
सो एक टिस सी हो ही जाती थी सीने
में
और
धीरे-धीरे मुझे जलन भी होने लगा था
बेतहाशा
बेहिसाब
और मै किसीसे कुछ कह भी नही सकता था
ना उससे
ना मेरे अपने से
मेरा अपना
फिरभी जानता था
मै क्यू ऐसा होता जा रहा हू
मै खुश रहू
खुश दिखू
इस कोशिश में
उसने उससे बैर लिया
या यु कहे उसने उससे मुँह फेर लिया
फिर तो वही होना था
जो हमेशा से होता आया है
आप सोच रहे होंगे क्या !
ना प्यार रहा
मेरे हक में
ना यार रहा
मेरा सच्चा !
उसे बुरा बना दी
पलभर में
फिर क्या हुआ
तीन बन्दर
बुरा मत कहो
बुरा मत सुनो
बुरा मत देखो वाले
भूल गये
गांधीजी का यह वाक्य.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
सोमवार, 19 नवंबर 2018
रविवार, 18 नवंबर 2018
शुक्रवार, 16 नवंबर 2018
गुरुवार, 15 नवंबर 2018
बुधवार, 14 नवंबर 2018
Stop !
Stop !
I wanna ask something..
Something like favour of you
Please show mercy at me
Please
Don't go ahead
Leaving me alone
Because I love you.. very much
And without your attention
I can't live peacefully
So..
Stop !
Please hug me
I am very lonely
You know this
Betterly..
Sketch and Poetry - Ravindra Bhardvaj
मंगलवार, 13 नवंबर 2018
सोमवार, 12 नवंबर 2018
रविवार, 11 नवंबर 2018
शनिवार, 10 नवंबर 2018
बीत गया दीपो का पर्व
गूगल से साभार |
दीपावली
बीत गयी
बीत गया
दीपो का पर्व
कुछ संदेश देकर
यू कि
अंधियारा अब ना रखना
अपने ह्दय में
मित्रवत व्यवहार करना
हरकिसी से
जीवन में ख़ुशी के रंग भरो
रंगोली के जैसे
कि देखते ही तुम्हे
हर कोई चहकके बोले
तू तो बड़ा मनभावन है रे !
Art by Ravindra Bhardvaj |
2.
याद रख
अच्छाई का वास होगा हर जगह
और बुराई का नाश होगा हर तरफ से, हर तरह से
मर्यादा पुरुषोत्तम राम जो
बैठे है तुम्हरे नईयां में
ओ निषाद भईयां !
-रवीन्द्र भारद्वाज
और बुराई का नाश होगा हर तरफ से, हर तरह से
मर्यादा पुरुषोत्तम राम जो
बैठे है तुम्हरे नईयां में
ओ निषाद भईयां !
-रवीन्द्र भारद्वाज
गुरुवार, 8 नवंबर 2018
वो दिन थे !
शायद
वो दिन थे बसंत के
चाँदनी रात की
और हल्की-हल्की बरसात की, दिन थे वो !
उनदिनों
कुछ कर गुजरना था
मर-मिटना था
गर तुम नही मिलती तो..
खैर
मिली भी तो
मुद्दत बाद
अबतक
मेरा जोश और जुनून मर चुका था
इस वजह से
तुम्हे पाने की चाहत नही मरी कि
तुम मुझसे प्यार नही करती
बल्कि इस वजह से कि
मै ही केवल तुमसे प्यार करने लगा था..
काश ! तुम करी होती मुझसे प्यार
और प्यार का इकरार..
तो बहुत कुछ कहने, सुनने और करने में आसानी होती
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज