गुरुवार, 29 नवंबर 2018

ये दिल !

जो  गुजरा 
वो गुजरा नही .

आजभी 
उसका ख्याल 
क्यूं बुनता है ये दिल !

ये दिल !
सम्भल जा !
अब आँखों में आसू नही बचा 
एकभी .
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

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