बुधवार, 28 नवंबर 2018

सुबह का इंतजार पूरा हुआ


आज सुबह का इंतजार
पूरा हुआ

होठो पे हँसी है
आँखों में चमक

पत्तो पर
ओस की जवानी है
मोती सदृश्य

मुर्गे का बाग़ है
गूंजता
अभीभी
माहौल में

छत पर
एक कबूतर है

उस छत पर दो
बैठे है

तुम भी आज क्या खूब निखरी-निखरी दिख रही हो यार !
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

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