आज सुबह का इंतजार
पूरा हुआ
होठो पे हँसी है
आँखों में चमक
पत्तो पर
ओस की जवानी है
मोती सदृश्य
मुर्गे का बाग़ है
गूंजता
अभीभी
माहौल में
छत पर
एक कबूतर है
उस छत पर दो
बैठे है
तुम भी आज क्या खूब निखरी-निखरी दिख रही हो यार !
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
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