रविवार, 20 अक्टूबर 2019

नदियाँ सबकी होती है

 
एक नदी जो मेरे लिए ही बहती थी
निर्वाण के रास्ते पर चल दी है 

जबकि नदियाँ सबकी होती है 
और किसीकी भी नही होती है 

उसका मेरा रिश्ता इतना पावन है कि 
जैसे एक-दूसरे को छूना भी पाप है 

लेकिन सबकुछ यू खत्म हुआ 
जैसे सुनामी में वो बहती चली जा रही हो 
अपनी मर्जी से
और मैं बेबश खड़ा 
देखता रहा हूँ
उसे।


~ रवीन्द्र भारद्वाज



मेरे हाथ मे तेरा हाथ था

मेरे हाथ मे तेरा हाथ था
फिर अचानक से क्यों छुड़ा लिया हाथ तुमने

तुम क्यों बदलने लगी 
हद से ज्यादा

मैं पर्वत से कूदा था
एकमात्र 
तुम तक पहुंचने के लिए
लेकिन
अफसोस होता है 
क्यों कूदा
नाहक ही।

तेरे मेरे प्यार की कुंडली नही मिलती अब क्यो 
पहले तो ज्यादा गुणों से मिलता था न।


~ रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 15 अक्टूबर 2019

तुम्हें पा लेते तो क्या होता !

तुम्हें पा लेते तो क्या होता !
शायद खोना पड़ता 
तुम्हें
एकदिन

तुम्हें नही पा सके तो 
क्या हुआ !
कम से कम 
खोने की नौबत तो नही आयी।

-- रवीन्द्र भारद्वाज

तुम्हे मतलब नही

तुम्हे मतलब नही 
किसीभी चीज से 
मैं जीऊ या मरू इस बात से भी नही 

खैर, इतना निर्दयी कसाई भी नही हुआ है 
मेरे चौक का 
जितना तुम हो गये हो 

इतना बेपरवाह वो पहाड़ नही है 
जिसके तरफ सुबह-सवेरे खिड़की खोलकर 
तुम देखती हो 
दो-चार मिनट एकटक 

हाँ, बेशक तुम शून्य में नही जीती हो 
लेकिन मुझे लेकर 
तुम इतनी अवचेतन हो गयी हो क्यो !


- रवीन्द्र भारद्वाज


शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2019

वह नदी

जो नदी बह के आगे निकल गई 
नही लौटेगी 
अब 

जो गुफ़्तगू मायने समझाता फिरता था
हरेक ख्यालात का 
किस्सा-कहानी सा लगता है अब वो 

तुम मिले 
फिरभी
अप्रत्याशित था वह मिलन 

दरअसल, क्षणभंगुर था वह मिलन।




- रवीन्द्र भारद्वाज




मंगलवार, 1 अक्टूबर 2019

तुम कुछ कहती तो

तुम आती तो
एक बात होती

मैं बुलाता तो 
दूसरी

तुम कुछ कहती तो 
एक बात के सौ मतलब निकलते

मैं कुछ कहू तो 
निर्रथक

- रवीन्द्र भारद्वाज