रविवार, 20 अक्टूबर 2019

नदियाँ सबकी होती है

 
एक नदी जो मेरे लिए ही बहती थी
निर्वाण के रास्ते पर चल दी है 

जबकि नदियाँ सबकी होती है 
और किसीकी भी नही होती है 

उसका मेरा रिश्ता इतना पावन है कि 
जैसे एक-दूसरे को छूना भी पाप है 

लेकिन सबकुछ यू खत्म हुआ 
जैसे सुनामी में वो बहती चली जा रही हो 
अपनी मर्जी से
और मैं बेबश खड़ा 
देखता रहा हूँ
उसे।


~ रवीन्द्र भारद्वाज



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