निगाहों में
तुम्हारी सूरत रही
और बाहो में मेरी जरूरत
हम घर से निकले तो थे
बहुत दूर
पर
नजदीकियों में समेट लिया तुमने मुझे
ऐसे जैसे हम होते तो है
आमने-सामने
एक-दूसरे के
लेकिन
रुके-रुके से कदम बढ़ाते है
जैसे अबकी गले मिलना पड़ेगा
वरना दम तोड़ देगी
महज नाम की मोहब्बत।
- रवीन्द्र भारद्वाज
बेहतर स्केच
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
आभार आदरणीय आपका सादर 🙏
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