सोमवार, 5 अगस्त 2019

नदी फिरभी नही समायी मुझमे

समन्दर था मैं

नदी फिरभी नही समायी मुझमे

दोनो बहे तो थे 
एक-दूसरे मे घुलने-मिलने के लिये 
लेकिन
उफ्फ, चट्टानों ने रास्ता बदल दिया
हमारा

घूम-फिरकर मिले भी तो 
तट भीगा 
केवल 
आँसुओ के फुहारों से 

और ऐसे मिलकर भी 
न जाने क्यों नही मिले फिरभी
हम-तुम

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

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