समन्दर था मैं
नदी फिरभी नही समायी मुझमे
दोनो बहे तो थे
एक-दूसरे मे घुलने-मिलने के लिये
लेकिन
उफ्फ, चट्टानों ने रास्ता बदल दिया
हमारा
घूम-फिरकर मिले भी तो
तट भीगा
केवल
आँसुओ के फुहारों से
और ऐसे मिलकर भी
न जाने क्यों नही मिले फिरभी
हम-तुम
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंप्रेम का गहरा अवसाद , गहरी रचना👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंवाह !!बहुत खूब!!👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अनुज
जवाब देंहटाएंसादर