कोई तो रास्ता होगा
जहाँ हम दिख जाये
अचानक से
एक-दूसरे को
और गले मिलकर
मिटा दे
सारे शिकवे-गिले
शहरो में जब शाम होती है
सुबह समझकर निकलते है घर से लोग
ऐसे ही तुम भी निकला करो
घर से बाहर
कि हो कही आमना-सामना
हमारा-तुम्हारा
-सोचकर
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
एक उमीद है बाकि , दिल को समझाने के लिए ये चाह बूरी तो नहीं | सार्थक रचना |
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