गुरुवार, 7 मार्च 2019

फ़गुआ में इस साल

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उमंग के बुलबुलें उठ रहे हैं 
तन-मन में 

तन-मन 
रंगीन हुआ हैं 
बसंती रंगों को 
जबसे फेका हैं 
प्रकृति ने 
हमारे ऊपर 

चलो फ़गुआ में इस साल 
तुम्हारे घर के तरफ आते हैं 
देखकर 
दूर से 
एक-दुसरे को 
मन से मन को 
प्रणय रंग लगायेंगे 

पकवान जैसे 
गालो पर खिलेंगी मुस्कान 
अगर हम एक-दुसरे को दिख जाते हैं 

चलो अबकी साल 
असर राग का दिल में समेटकर 
यादों के टूटे आशियाँ को 
दुरुस्त करने में जुट जाये

हमने एक-दुसरे को सदियों तक चाहा, सराहा हैं 
आखिर 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


2 टिप्‍पणियां:

  1. चलो अबकी साल
    असर राग का दिल में समेटकर
    यादों के टूटे आशियाँ को
    दुरुस्त करने में जुट जाये
    बेहद खूबसूरत रचना

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