शनिवार, 23 मार्च 2019

बसंत

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दिन और अवधि के हिसाब से 
हो जाता हैं अंत बसंत का 
प्रत्येक वर्ष 

लेकिन सच पूछो तो 
बसंत छाया रहता हैं 
एक उम्मीद की तरह 
वर्षभर 
हमारे अंदर 

उसकी यादें 
उसकी बातें 
कहां बिसरा पाता हैं भूले से भी कोई 

आखिर 
कौन नही करना चाहता 
उसकी प्रसंशा करना 
और कौन नही चाहता 
उसके बासंती रंगों में रँगना

सच पूछो तो 
उसका जवाब नही 

और जिसका जवाब नही 
उसके बारे में 
क्या कहना !

हर शब्द कम पड़ जायेगा
आखिर में.

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

12 टिप्‍पणियां:

  1. सच पूछो तो बसंत छाया रहता है
    एक उम्मीद की तरह
    वर्ष भर हमारे अंदर
    बेहतरीन

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  2. बसंत छाया रहता हैं
    एक उम्मीद की तरह
    वर्षभर ......, बहुत खूब..., उम्मीद और वसन्त की तुलना बेहद सुन्दर लगी ।

    जवाब देंहटाएं
  3. "पांच लिंकों का आनंद" में इस रचना को साझा करने के लिए आभार..... जी सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह कुछ अलहदा पर सुंदर संयोजन।

    जवाब देंहटाएं
  5. बसंत छाया रहता हैं
    एक उम्मीद की तरह
    वर्षभर
    हमारे अंदर
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर...

    जवाब देंहटाएं