मुझे तुम्हारी बाहों में रहना था
मगर तुमने उचित ना समझा कभी
बाहों में लटकाए
पर्स की तरह
मुझे संग-संग अपने
घुमाना
एक रात की बात हैं
मैं तुम्हारी बाहों के घेरे में सोया था
और अचानक से नींद टूट गयी
तब जाना महज वो सपना था
चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
गुड
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय सादर
हटाएं'ब्लॉग बुलेटिन' में इस रचना को जगह देने के लिए आभार आदरणीय सादर
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