मंगलवार, 8 जनवरी 2019

आधी रात गये

Art by Ravindra Bhardvaj
एक

आधी रात गये
आधी उम्र गयी 

बात कुछ बनी नहीं 
बात कुछ बिगड़ी भी नहीं 

वो मेरे पास 
मैं उसके पास 


दो 

बड़ा ही खुबसुरत भरम होता हैं 
तू अबभी मेरे लिए रोता हैं 

जबकि वो जमाने उड़ते चले गये 
क्षितिज की ओर

तुम्हारी ओढ़नी की तरह 
मैं भी उड़ता था कभी 
तुम्हारे आगे-पीछे 

अब सामना 
होना 
दुर्गम जान पड़ता हैं 

बरस पर बरस बीत रहे हैं 
हम खुद में तुमको ढूढ़ रहे हैं 
यह कैसी खोज हैं 
कि मिलकर भी 
खुद मे
तुमसे 
जैसे मिलना ही नही चाहता हूँ मैं तुमसे.

तीन 

वो 
हवा का झोंका 
पुरबा 
पछुआ 

उसे आते ही 
चले जाना हैं 
खाब 
याद 
एहसास 
बनकर.
- रवीन्द्र भारद्वाज

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