तू नदी थी
साफ़-सुथरी
शीतल
पाप मेरे सारे
धूल गये
तुममे
क्या तुममे अबभी मेरा अंश है कोई
मै पूछता रहता हू
कतारों में खड़े पेड़ो और पौधे से.
सब
चुप है..
क्यू ?
आखिर क्यू !
कोई कुछ नही बोलता
तुम्हारे बारे में
कि तुम कहाँ रहती हो..
कैसी हो..
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
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