शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

सुबह और कली

 

सुबह 

मेरी खिड़की की पल्लों पर 

ठहरी हैं 

कि कब खोलूंगा मैं खिड़की 


कली 

बाँहें अपनी खोल, खड़ी है

कि कब समाउंगा मैं 

उसमें।


_रवीन्द्र भारद्वाज_

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