बुधवार, 16 दिसंबर 2020

मुझे खुदपर तरस आता है

मुझसे पूछो 
कैसा हूँ 

गैर तो गैर ठहरे 
उन्हें क्यों बताऊ अपनी हालत 

मुझे खुदपर तरस आता है
कभी-कभी
कि मैं खिंचा ही क्यों गया 
अवचेतन होकर
तुम्हारे प्रेम के गहरे लाल समंदर मे...

- रवीन्द्र भारद्वाज

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही मार्मिक भाव। प्रेम पर खुद का चिंतन शानदार है।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 06 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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