मंगलवार, 20 अगस्त 2019

तू मेरा नही तो क्या

तू मेरा नही तो क्या 
मेरा हुआ करता था तू भी कभी 

कभी मेरे बाजुओं में दम तोड़ने की आरजू थी तुम्हारी

नदी सरीखी बहने का इरादा था तुम्हारा 
मेरे अंदर

कभी न गुजरनेवाले पूर्णरूप से मेघ की तरह 
तुम चलते रहना चाहती थी हमेशा
मेरे ऊपर से 

समुन्दर के किनारे लेटकर 
खिली धूप में 
गॉगल्स में से देखने की एक-दूसरे की इच्छा तो 
अधूरी रह गयी।

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


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