प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है..
अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
बेहतरीन पेन्सिल-स्केच रवीन्द्र जी ! नदी किसी की नहीं होती, सब को भुलावे में रखती है और शहर-दर- शहर भटकती रहती है, शहर को लगता वो उसकी है , पर वो तो हर शहर के लिए बनी है और जब समुन्दर में मिलती है तब उसकी संज्ञा बदल चुकी होती है
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 12 अगस्त 2019 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पेन्सिल-स्केच रवीन्द्र जी ! नदी किसी की नहीं होती, सब को भुलावे में रखती है और शहर-दर- शहर भटकती रहती है, शहर को लगता वो उसकी है , पर वो तो हर शहर के लिए बनी है और जब समुन्दर में मिलती है तब उसकी संज्ञा बदल चुकी होती है
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत सुंदर !!
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाएँ कुछ तो अलग सा कहती है प्रिय रविन्द्र जी | सस्नेह शुभकामनायें भावपूर्ण सृजन के लिए |
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