सागर उफनके
शांत हो जायेगा
घड़े का पानी छलक के
अशांत हो जायेगा
दबे पाँव आती है
तुम्हारी यादे
सन्नाटे से जमी रातों में
और मोम जैसे पिघलाती है मुझे
शांत मन अशांत हो जाता है
एक ही जगह पर बैठे-बैठे
सैकड़ों जगह पर ढूढ़ता-फिरता हू
तुम्हारे कदमो का निशान
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
दबे पाँव आती है
जवाब देंहटाएंतुम्हारी यादे
सन्नाटे से जमी रातों में
और मोम जैसे पिघलाती है मुझे ... बेहद खूबसूरत रचना
वाह बहुत सुन्दर
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